शुक्रवार, 2 नवंबर 2012

मेरी दीवानगी

मेरी खामोशियों में भी फ़साना ढूँढ लेती हैं,
बड़ी शातिर है ये दुनिया बहाना ढूँढ लेती हैं ,

हकीकत जिद किये बैठे है चकनाचूर करने को,
मगर हर आँख फिर सपना सुहाना ढूँढ लेती हैं ,

उठाती है जो खतरा हर कदम पे डूब जाने का,
वही कोशिश समंदर में खजाना ढूँढ लेती हैं,

जुनूँ मंजिल का, राहों में बचाता हैं भटकने से,
मेरी दीवानगी अपना ठिकाना ढूँढ लेती हैं।

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