शुक्रवार, 2 नवंबर 2012

चंद शेर

डूबी हैं मेरी उँगलियाँ मेरे ही लहू में,
ये कांच के टुकड़े पे भरोसे की सजा है।
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तबाह करने के हमको थे और भी रास्ते,
उन्हें न जाने मोहब्बत का क्यों ख्याल आया।
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नज़रों ने खता की थी, नजरो को सजा मिलती,
दिल ने क्यूँ, यूँ दिन रात तड़पने की सजा पायी।
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एक नफरत ही है जिसे दुनिया लम्हों में पहचान लेती है,
वरना मोहब्बत का पता लगने में तो ज़माने बीत जाते हैं।
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मेरी दीवानगी

मेरी खामोशियों में भी फ़साना ढूँढ लेती हैं,
बड़ी शातिर है ये दुनिया बहाना ढूँढ लेती हैं ,

हकीकत जिद किये बैठे है चकनाचूर करने को,
मगर हर आँख फिर सपना सुहाना ढूँढ लेती हैं ,

उठाती है जो खतरा हर कदम पे डूब जाने का,
वही कोशिश समंदर में खजाना ढूँढ लेती हैं,

जुनूँ मंजिल का, राहों में बचाता हैं भटकने से,
मेरी दीवानगी अपना ठिकाना ढूँढ लेती हैं।

शुक्रवार, 26 अक्तूबर 2012

मज़ा आ जाये अबकी सावन में, गर ऐसा हो जाये,
हमारी आँख के आंसू, तुम्हारी छत पे जा बरसे 
 वो दुश्मनी से देखते है, पर देखते तो है,
मैं शायद हूँ, हूँ तो किसी की निगाह में .
इन सूखती फसलों ने देखे है वो काले बादल,
जो कही और बरसने को इधर से गुजरे.

शनिवार, 20 अक्तूबर 2012

अच्छे लगेंगे

ये गली कूंचे बड़े अच्छे लगेंगे
ये मंज़र दूर से अच्छे लगेंगे
अभी सूरज हमारे सामने है
यह किस्से दिन ढले अच्छे लगेंगे
निगाहों में अभी है ख्वाब रोशन
अभी तो रतजगे अच्छे लगेंगे
ज़रा दो चार सदमे और सह लो
हमारे फलसफे अच्छे लगेंगे
हमरी मंजिले बेकार लेकिन
हमारे रास्ते अच्छे लगेंगे
हमारे पास क्या शोहरत न दौलत
उन्हें हम क्यों अच्छे लगेंगे?

तुम रूठे

जग रूठे तो बात ना कोई,
तुम रूठे तो प्यार ना होगा,
मनिओं में तुम ही तो कौस्तुभ, 
तारों में तुम ही तो चंदा,
नदियों में तुम ही तो गंगा,
गंधों में तुम ही निशिगंधा,
दीपक में जैसे लौ-बाती,
तुम प्राणों के संग-संगाती,
तन बिछुडे तो बात ना कोई,
तुम बिछुडे सिंगार ना होगा,
जग रूठे तो बात ना कोई,
तुम रूठे तो प्यार ना होगा.